Friday, June 28, 2013

हिन्दी लिखनी याद है भी या नही ?


ट्रेनिंग में बैठे बैठे..

सोच रही हूँ..

हिन्दी लिखनी याद है भी या नही ?

अ‍ॅफीस में फलाना डिंका सीख के क्या करना

जब सिर्फ़ अंग्रेज़ी में है Google पर जाके भरना ?

इतने सालो में जो सिखाया,

समझाया, रटाया..

पता नही कब कैसे भूल गई

डर लगता है सोच के..

क्या हर पुरानी चीज मिट जाती है

जब होती है कुछ बात नई?

  मम्मी की मार, टीचर की डांट..

"ढंग से लिख.."

"इतना नहीं काट.."

"स्पेलिंग ग़लत है, लिखाई खराब.."

बस यही रह गया..

बाकी सब बचपन का ख्वाब..

आज अगर मम्मी यह देखेंगी..

हँसेंगी.. शायद नाराज होंगी..

पर बात बदल गई है,

 मम्मी को लिखाई-स्पेलिंग की चिंता नही

जिसकी है... वह भी मेरे बस की नहीं |

बड़ी हो गई; पर मैं नही बदली

जो चीज जब करनी है नही करती;

परेशान होके ... रोके...

किसी तरह.. हो जाती है ठीक

डर है मम्मी समझेंगी या नही

स्पेलिंग, लिखाई वही रह गई

यह बात भी यूही रहेगी

शायद गलत, शायद सही |

Thursday, June 13, 2013

Today and Tomorrow

Fast forwarding the time
To one without any tether
I see them both
Happy and together

Laughing and playing
Walking hand in hand
A life stretched out before them
Forever that spans

A life that they dreamt
A life that they wished
All theirs to share
All theirs to cherish

Free from the mind
Which binds, destroys
Amongst kin and kind
Blessed with joy

They learn and grow
With time on their side
Every moment a gift that
They were denied

Forever and beyond
With joy and sorrow
Together they walk
Today and tomorrow